SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रोपदी के पाँच पति होना, पाण्डवों का वनवास आदि निकाचित कर्मों का ही फल है / प्रश्न- 181. निकाचित कर्मों का बन्ध कैसे होता है ? उत्तर- 1. जब अपने कोई भी अच्छा या बुरा कार्य करें तब उसमें मन वचन काया तीनों ही तल्लीन बन जाए, एकमेव हो जाए उस समय वह कर्म निकाचित बन सकता है / 2. कोई शुभ अथवा अशुभ कार्य करने के पश्चात् उसकी अत्यन्त प्रशंसा करें तो शान्तिकाल में रहा वह कर्म निकाचित हो सकता 3. वैसे तो पाप करना ही नहीं चाहिए परन्तु कभी किसी कारण करना ही पड़े तो वह पाप हँस-हँसकर नहीं करना उस पाप को अपने मन से नहीं करना / जब तक शरीर ही पाप करता है तब तक कर्म निकाचित नहीं बनता / अगर उसमें तीव्रता पूर्वक मन मिल गया तो कर्म निकाचित बनने की पूर्ण शक्यता है। अतः पाप करना पड़े तो तीव्र भाव से नहीं करना तथा पाप हो जाने के बाद पाप की कभी प्रशंसा भी नहीं करना / उत्तर प्रश्न- 182. भ. महावीरस्वामीजी का परमभक्त श्रेणिक नरक में गया और गौशालक 12वें देवलोक में गया / क्या कारण होगा ? कर्म विज्ञान समझने के बाद कुछ भी आश्चर्य नहीं लगता / कर्म विज्ञान कहता है गौशाला इसलिए 12वें देवलोक में नहीं गया परन्तु भगवान की आशातना करने के बाद मुझसे घोरातिघोर पाप हो गया, अत्यन्त तीव्रभाव से ऐसा पश्चात्ताप किया कि अन्तिम समय समकित को प्राप्त कर लिया और पश्चात्ताप की तीव्रता के कारण 12वें देवलोक की भेंट प्राप्त हुई / 227.
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy