________________ 2. बद्ध- लोहे के टुकड़े के साथ सोय धागे से बान्ध कर रखी हो , उसको अलग करते थोड़ा समय लगेगा जब धागा टूटेगा तभी सोय अलग होगी / इसे कहते है बद्ध बन्ध / 3. निद्धत- लोहे के टुकड़े के साथ सोय को हथोड़ी से अच्छी तरह जमा कर रखी हो उसे अलग करते अधिक समय चाहिए ? 4. निकाचित- लोहे के टुकड़े के साथ सोय को भट्टी में गर्म करके एक रूप बना देना निकाचित बन्ध कहा जाता है | पहली तीन सोय तो ज्यादा से ज्यादा मेहनत से अलंग की जा सकती है परन्तु चौथी सोय कैसे अलग हो सकती है ? ऐसा है निकाचित कर्म / प्रश्न- 178. आठवें करण निकाचना करण की व्याख्या समझाएँ / किए गए कर्म भोगने ही पड़ेंगे, भोगे बिना कर्मों का छुटकारा नहीं होता ऐसा जो सुनने में आता है वह निकाचित क्रर्मों के लिए समझना चाहिए / कर्मों को बान्धते समय, अथवा बान्धने के पश्चात् जब कर्मों का अबाधाकाल चल रहा हो उस समय आत्मा में क्लिष्ट भाव पैदा हो जाए तो कर्म निकाचित हो जाते हैं / अब उन कर्मों में अब कोई भी फेरफार नहीं हो सकता | भोगे बिना छुटकारा ही नहीं / भले कितना भी पश्चात्ताप क्यों न कर लें, कितनी भी उत्कृष्ट धर्माराधना क्यों न कर लें, उस पूर्व के निकाचित कर्मों में कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा। प्रश्न- 179. क्या की गई धर्माराधना अथवा पश्चात्ताप निकाचित कर्मों के समय निष्फल हो जाता है ? उत्तर 225