________________ अगर पुष्कल प्रमाण में भजिया न खाया होता तो अशातावेदनीय कर्म की उदीरणा न होती / आबाधाकाल पूर्ण होता तभी अशातावेदनीय कर्म अपना प्रभाव दिखाता / इसलिए कर्मों को पहले भी उदय में लाया जा सकता है / प्रश्न- 174. उपशमना करण की व्याख्या समझाएँ ? उत्तर- उपशमना कर्म केवल मोहनीय कर्म में ही असर करता है / जैसे कि आत्मा सबसे पहली बार जो सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है उसे उपशम समकित कहते हैं / उस समय मिथ्यात्व को लाने वाला मिथ्यात्व मोहनीय कर्म है उस मिथ्यात्व मोहनीय कर्म की एक अन्तमुहूर्त समय तक आत्मा ने जो उपशमना की अर्थात् उस समय तक मिथ्यात्व मोहनीय कर्म उदय में नहीं आया / उतने समय तक आत्मा मिथ्यात्वी नहीं बन सकता / उस कर्मदलिकों में जो अपरिवर्तनशील अवस्था पैदा हुई उसे उपशमना कहा जाता है / इस उपशमना करण में संक्रमण करण, उदवर्तना करण, अपवर्तना करण सिवाय अन्य कोई भी करण नहीं लगता | प्रश्न- 175. निद्धति करण किसे कहते हैं ? उत्तर- कर्मों के बन्ध जाने के बाद जब शान्तिकाल चल रहा हो उस समय आत्मा में इस प्रकार के अध्यवसाय (भाव) पैदा हो जाएँ जिसके कारण कर्मों के समय में तीव्रता को घटाया या बढ़ाया जा सकता है परन्तु संक्रमण करण से कोई भी फेरफार नहीं होता / इसमें उद्वर्तना और अपवर्तना ही करण लगते हैं इसके सिवाय कोई भी करण नहीं लगता / निद्धति करण में उद्वर्तना और अपवर्तना ये दो करण जबकि उपशमना में इन दो के उपरान्त संक्रमण करण भी लग सकता है / उपशमना करण और निद्धति करण में यही अन्तर है। 223