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________________ प्रश्न- 155. नीच गोत्र कर्म का बन्ध कैसे होता है ? उत्तर 1. जातिमद करने से- मेरी जाति कितनी महान स्वयं को प्राप्त उत्तम जाति का अभिमान करने से नीचगोत्र कर्म का बन्ध होता है / हरिकेशी ने पूर्वभव में स्वयं की जाति का मद किया तो अगले भव में उसे चाण्डाल रूप में जन्म लेना पड़ा / 2. कुलमद करने से- माता के कुल को जाति कहते हैं / जबकि पिता के पक्ष को कुल कहा जाता है / मरिची (प्रभु वीर की आत्मा) अपने कुल का मद करते हुए नृत्य करने लगा और बोलने लगामेरा कुल कितना महान् ! मेरा दादा (ऋषभदेव) प्रथम तीर्थंकर ! मेरे पिता भरत प्रथम चक्रवर्ती, मैं (मरिची) प्रथम वासुदेव बनूँगा / इस प्रकार कुल का मद करने से नीच गोत्र कर्म का बन्ध हुआ / नीचगोत्र कर्मोदय से उन्हें देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षी में 82 दिन तक रहना पड़ा / 3. दूसरों की निन्दा करने से- दूसरे व्यक्तियों के दोषों को देखने से, उनकी निन्दा करने से, किसी को कलंकित करने से, आक्षेप करने से नीच गोत्र कर्म का बन्ध होता है / 4. स्वप्रशंसा करने से- अपने गुणों का दूसरों के पास बयान करने से स्वगुणों की प्रशंसा करने से नीचगोत्र कर्म का बन्ध होता है | जीवन में की गई सुन्दर दान-तप आदि की आराधना की स्वप्रशंसा करने से पुण्य क्षीण हो जाता है / 5. धर्मीजनों की हँसी करने से- धर्म की आराधना करने वाले जीवों की मश्करी करने से, उन्हें धर्म का पूँछड़ा ढोंगी आदि शब्दों से बोलने पर भी नीचगोत्र कर्म का बन्ध होता है। 6. दुर्गंछा करने से- साधु-साध्वी जी के मलीन वस्त्रों को देखकर 212
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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