________________ प्रश्न- 11. अबाधाकाल किसे कहते हैं ? उत्तर सामान्य रूप से कर्म स्थिति दो प्रकार की होती है 1. अबाधाकाल, 2. विपाककाल | कर्म बाँधने के पश्चात् जब तक उदय में नहीं आते आत्मा में शान्त भाव से पड़े रहते हैं वह अबाधाकाल कहलाता है और जब वह कर्म उदय में आते हैं उसे विपाककाल कहते हैं | प्रश्न- 12. अबाधाकाल में कर्मों का फेरफार कैसे होता है ? उत्तर अबाधाकाल में कर्मों का बहुत ही फेरफार हो सकता है जैसे की शातावेदनीय बाँधा हुआ कर्म अशातावेदनीय कर्म के रूप में संक्रमण हो सकता है | बाँधे हुए सजातीय कर्म में ही संक्रमण होता है / साता का असाता में, असाता का साता में, आयुष्य कर्म में यह नियम लागू नहीं होता है | जैसे मोहनीय कर्म का अन्तराय में, नामकर्म का गोत्र कर्म में ऐसे मूल प्रकृतियों में परस्पर संक्रमण नहीं होता / परन्तु उसी कर्म की उत्तर प्रकृतियों के साथ फेरफार हो सकता है। प्रश्न- 13. कर्मों की स्थिति को क्या बढ़ाया या घटाया भी जा सकता है ? उत्तर हाँ ! जिस रूप में कर्म को बाँधा उसका समय. तथा रस बढ़ भी सकता है / स्थिति और रस का बढ़ना उद्वर्तना कहलाता है तथा स्थिति और रस का घट जाना अपवर्तना करण कहलाता प्रश्न- 14. कर्मों की उदवर्तना और अपवर्तना कैसे होती है ? निकाचित कर्मों के सिवाय (जो कि बहुत थोड़े होते हैं) कर्मों को पुरुषार्थ द्वारा फेरफार किया जा सकता है। ट्रांसफर न हो तो 100 वर्ष की स्थिति को 10 वर्ष की कर सकते हैं / पाप पुरुषार्थ से 10 उत्तर 149