________________ उत्तर उत्तर परमात्मा की साधना सामायिक से शुरू होती है और यथाख्यात चारित्र से पूर्ण होती है / प्रश्न-8. कर्म जीव को ही क्यों लगते हैं ? अजीव को क्यों नहीं ? जैसे लोहा चुम्बक से खिंचा जाता है मिट्टी के ढेले सोने या चाँदी के टुकड़े को चुम्बक खींच नहीं सकता क्योंकि इनमें खिंचाने की शक्ति नहीं है / यह शक्ति लोहे में ही है, जिसे चुम्बक खींच लेता है। इसी तरह कार्मण वर्गणा में खिंचाने की शक्ति है, जीव कषाय द्वारा उन्हें खींचकर कर्म रूप में बना लेता है / जबकि अजीव में यह शक्ति नहीं होती / प्रश्न-9. आत्मा के साथ कर्म चिपक जाने के बाद उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है ? उत्तर- जैसे सूखे कपड़े पर धूल पड़ जाए तो कपड़े को झाड़ने से धूल साफ हो जाती है / परन्तु वह कपड़ा घी से चिकना हुआ हो तो झाड़ने से धूल के कण नहीं निकलते हैं वैसे ही जीव के साथ कर्म चिपक जाने पर उन्हें निकालने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है / जैसे घी का कपड़ा गर्म पानी से धोकर साफ किया जाता है वैसे ही जीव के साथ चिपके हुए कर्मों को तप-वैराग्य-समता रूपी गर्म पानी से साफ करना पड़ता है तभी आत्मा शुद्ध बनती है / प्रश्न- 10. क्या बाँधे हुए सभी कर्म भोगने ही पड़ते हैं ? उत्तर- नहीं ! कर्म भी दो प्रकार के होते हैं / 1. निकाचित, 2. अनिकाचित / निकाचित कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं होता / परन्तु अनिकाचित कर्मों को अबाधाकाल के दौरान तप-त्याग-वैराग्य समताभाव से नष्ट किया जा सकता है / 148