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________________ तथा मन्दिरों में वहाँ की शिल्पकला की कॉपी की जा रही है / परन्तु अभी तक आबू देलवाड़ा से बढ़कर कोई भी शिल्प कला या कोतरनी नहीं बनी है | बहत दूर के भूतकाल की बात तो छोडिए जरा बहुत नजदीक के भूतकाल को याद करें तो भी श्रीमान् सेठ मोती शा मुम्बई का शाह सौदागर कहलाता था / मुम्बई की धरती पर जैनों में सबसे पहले इस सेठ ने ही कदम रखे थे / उस समय मुम्बई में पारसियों तथा वैष्णवों के धर्मस्थान बन चुके थे, परन्तु जैनों को कोई भी धर्मस्थान नहीं था / उस समय सबसे पहले मुम्बई कोट में मोती शा सेठ के भाई नेमचन्द सेठ ने शान्तिनाथ भगवान का जिनालय बनवाया था / उसके पश्चात् जैनों की संख्या बढ़ने पर सेठ ने पायधुनी में गोडीजी पार्श्वनाथ, शान्तिनाथ तथा चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर का निर्माण कराया / ___ उस समय व्यक्ति पालीताणा नहीं जा सकते थे उनके लिए सेठ मोती शा ने भायखला में शत्रुञ्जय तीर्थ की स्थापना की क्योंकि सेठ को शत्रुञ्जय गिरिराज के ऊपर बहुत आस्था थी / भायखला में श्री आदिनाथ भगवान, श्री शान्तिनाथ भगवन, श्री पुण्डरीकस्वामीजी, रायण पगला, सूरजकुण्ड आदि की स्थापना की / जिसकी आज भी प्रतिदिन हजारों भक्त पूजा उपासना करते हैं / अब तो भायखला मन्दिरजी के चारों तरफ जैनों के हजारों मकान बन चुके हैं। भायखला मन्दिरजी के लिए श्री आदिनाथ भगवान आदि 16 जिन-प्रतिमाएँ अहमदाबाद से धूप-दीपक के साथ पूजा के वस्त्रों को पहनकर पालकी में विराजमान करके सेठ अपने कन्धों पर उठाकर लाए थे / मोती शा के साथ सेठ श्री हेमाभाई, सेठ श्री बालाभाई, सेठ श्री त्रिक्रमभाई आदि भी साथ थे / सभी प्रतिमाओं को यह लोग भरूच तक पैदल चलकर लाए थे और भरूच से दरिया मार्ग से मुम्बई लेकर आए थे / मुम्बई में प्रभुजी का भव्य स्वागत सामैया किया गया / अंग्रेजों का सरकारी बैण्ड था, बहिनें मंगल कलश लेकर आई / अंग्रेज भी प्रभुजी की इस स्वागत यात्रा को देखकर पागल हो गए थे / सेठानी 142
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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