________________ सम्पत्ति का सदुपयोग / भगवान महावीरस्वामीजी की वाणी वह पतित पावनी निर्मल धारा है जिसमें डूबने से आत्मा अपने लोक-परलोक तथा लोकातीत तीनों प्रकार के जीवन को पावन एवं निर्मल कर लेता है / द्रव्य गंगा तन के ताप को कुछ क्षणों के लिए भले ही शीतल कर दे परन्तु उसमें मन के ताप को शीतल करने की क्षमता नहीं है / भगवान महावीर की वाणी रूपी शीतल धारा मानव के मनस्ताप को अखण्ड शान्ति और शीतलता प्रदान करती है / आज हमें जैन कुल में जन्म मिला है। ऊर्ध्वगति में ले जाने वाला परमात्मा का शासन मिला है / ऐसे सर्वोत्तम संयोग को प्राप्त करके भी यदि पाप प्रवृत्तियों में ही लगे रहे तो धर्मशास्त्र कहते हैं कि ऐसो जन्म मिले न बारम्बार / / मानव का भव तो जंक्शन जैसा है / सभी गाड़ियाँ यहाँ से ही छूटती है। जिस भव में जिस गति में जाना हो वहाँ जाने की सभी ट्रेनें सभी फ्लाईट यहाँ से ही जाती है | बोलो आपको कहाँ जाना है ? जहाँ जाने की इच्छा हो वहाँ का टिकिट पहले लेना पड़गा, उसके लिए पासपोर्ट चाहिए, पॉकिट में पैसा भी चाहिए / जेब में रिक्शा का भी बिल चुकाने का पैसा न हो और अमेरिका जाने की बातें करें तो नहीं चलेगा | पहले रुपया इकट्ठा करो बाद में अमेरिका जाने की बात करो / यदि मरने के बाद अच्छी गति में जाना चाहते हो तो पहले इस भव में पुण्य का बेलेन्स करना पड़ेगा / पुण्य के बिना सद्गति नहीं मिलेगी / पुण्य के बिना सम्पत्ति और सन्मति की प्राप्ति भी नहीं होती / सम्पत्ति की प्राप्ति होने पर भी पुण्य के बिना उसका सदुपयोग भी नहीं होता / शास्त्रकार महाराजा कहते हैं कि सम्पत्ति का आगमन होने पर पाँच-पाँच दुर्गुण जीवन में एक साथ आ जाते हैं / 1. अहंकार, 2. निर्दयता, 3. कर्कश भाषा, 4. तृष्णा और 5. नीचजनों की प्रीति / सम्पत्ति आने पर प्रायः करके विनय, नम्रता आदि गुण 138