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________________ स्वयं तो प्रभु-भक्ति व गुरु-भक्ति में लीन रहती हैं, बल्कि अन्यों को भी प्रभु-भक्ति से जुड़ने हेतु प्रतिबोधित करती रहती हैं। प्रभु-भक्ति, गुरु-भक्ति से साध्वीजी के संयम जीवन को सदा ही सही दिशा मिलती है, ऐसा उनका स्वयं का अनुभव है। साध्वीजी महाराज के भक्तियोग की भव्यता की भूरि-भूरि अनुमोदना ! * प्रवचन कौशल- आचार्यश्री विजय वल्लभसूरीश्वरजी म. सा. ने साध्वी संघ के उत्थान हेतु उन्हें प्रवचन करने की आज्ञा प्रदान की थी। साध्वी समुदाय ने भी सदा उनके विश्वास को बनाए रखा एवं उनके आज्ञानुरूप संघ संचालन में कार्य किए। साध्वीजी के विलक्षण, तेजस्वी एवं मेधावी रूप से सम्पूर्ण समाज आलोकित हुआ है। प्रवचन-प्रभाविका साध्वीश्री प्रगुणाश्रीजी एवं प्रवचन-दक्षा साध्वीश्री प्रियधर्माश्रीजी के सारगर्भित प्रवचनों से अनेकों श्रावक-श्राविकाओं के जीवन में आशातीत परिवर्तन आया है। साध्वीवर्या ने अनेकों सुश्रावक-सुश्राविकाओं को 12 व्रतधारी श्रमणोपासक बनाया है। * मण्डल गठन- गुरु वल्लभ कहा करते थे कि धर्म का बोझ आज माताओंबहनों के कन्धों पर टिका है। इसी धर्म जागृति के उद्देश्य से साध्वीश्री प्रगुणाश्रीजी म., साध्वीश्री प्रियधर्माश्रीजी म. ने श्राविकाओं को सुदृढ़, धर्मनिष्ठ एवं सुव्यवस्थित करने हेतु अनेक मण्डलों की स्थापना की है एवं भविष्य की नींव रखने वाली भावी पीढ़ी में सुसंस्कार सिंचन हेतु बाल मण्डलों की स्थापना की है। सभी मण्डलों की विशेषता यही है कि उनके नाम गुरु आत्म-वल्लभ पर ही रखे गए हैं। यथा* आगरा में युवती मण्डल * मुरादाबाद में श्री आत्म-वल्लभ तरुणी मण्डल एवं युवती मण्डल ___ लुधियाना वल्लभनगर में विजय समुद्रसूरि तरुणी मण्डल * कोटकपुरा में श्री आत्म-वल्लभ जैन महिला मण्डल * जंडियाला में श्री आत्म-वल्लभ महिला मण्डल का पुनर्गठन * * 12
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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