________________ प्रतिमा का दर्शन करते समय यह संकल्प किया था कि मैं भी जीवन में ऐसी ही प्रभु की प्रतिमा बनाऊँगा / मुझे लगता है कि वह मेरी भावना पूर्ण नहीं होगी / इन शब्दों को सुनते ही वस्तुपाल ने कहा- भैया लूणिग ! प्रतिमा के लिए आँसू ! तुम चिन्ता मत करो, मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ति हेतु, तुम्हारी ही स्मृति में शक्ति होने पर ऐसा अद्वितीय मन्दिर बनाऊँगा जिसे दुनिया याद करेगी, आज मैं तुम्हारे सामने यह संकल्प करता हूँ | यह सुनते ही हर्षित हृदय से लूणिग ने प्राण त्याग किए | समय आने पर वस्तुपाल ने आबू में 'लूणिग वसही' नाम का भव्य कलात्मक मन्दिर बनवाया / सवणे नाणे य विनाणे पच्चक्खाणे य संजमे / अणासवे तवे चेव, बोदाणे अकिरिय सिद्धि || भगवती-सूत्र श. 2, उ. 5 सुनने से ज्ञान होता है, ज्ञान से विज्ञान (विशिष्ट ज्ञान) होता है / विज्ञान होने से आत्मा प्रत्याख्यान करता है, जिससे संयम की आराधना होती है / संयम से नवीन कर्मों का आना रुकता है, तप की आराधना होती है, जिससे पुराने कर्म क्षय होते हैं / कर्मों के क्षय होने से जीव क्रिया रहित होता है तथा सिद्धि को प्राप्त करता है। 129