________________ भाई हो तो वस्तुपाल जैसा वस्तुपाल तेजपाल के नाम से सभी परिचित हैं / परन्तु उनका भी एक छोटा भाई था उसका नाम था 'लूणिग'। एक बार वह आबू तीर्थ की यात्रा करने के लिए गया / वहाँ पर विमल शाह मन्त्री के द्वारा बनाया हुआ परमात्मा का मन्दिर तथा उसकी कलाकृति को देखकर लूणिग आश्चर्य चकित हो गया / अद्भुत मनोहारिणी परमात्मा की प्रतिमा को देखकर उसी में तन्मय बन गया / टकटकी लगाकर परमात्मा को देखता ही रहा / देखता ही रहा / वहाँ पर ही उसने संकल्प किया कि परमात्मा मुझे शक्ति दे तो मैं भी ऐसी ही एक प्रभु प्रतिमा बनाऊँ / महाकाल के गणित को कोई नहीं जान सकता / भविष्य की गोद में क्या छिपा है उसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता / तभी तो यह कहावत चरितार्थ हुई कि- 'न जान्यु जानकी नाथे सवारे शुं थवा नुं छे / ' छोटी उमर में ही यमराजा ने लूणिग पर आक्रमण कर दिया / भयंकर . विचित्र रोग का भोग बन गया लूणिग / दिन प्रतिदिन उसका शरीर क्षीण होने लगा | उस समय वस्तुपाल का सम्पूर्ण कुटुम्ब अत्यन्त गरीबी अवस्था में था / लूणिग के लिए औषध लाने के लिए भी उनके पास पैसा नहीं था / वैद्य के द्वारा बताई हुई औषध जंगल में इधर-उधर घूमकर ले आते और उसे देते / लूणिग का बहुत इलाज करने पर भी स्वस्थता के चिन्ह दिखाई नहीं दे रहे थे फिर भी सभी तन-मन से सेवा में संलग्न थे / ___ एक दिन लूणिग की आँखों से आँसुओं की अश्रुधारा बहने लगी / वस्तुपाल तेजपाल ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा भैया लूणिग ! आज तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों ? लूणिग बोला भैया ! आप सभी ने मेरी बहुत सेवा की / लगता है अब मेरी आयु की घड़ियाँ समाप्त होने वाली है / मेरी आँखों में आँसू आने का कारण यह है कि मैंने आबू में विमल शाह मन्त्री के द्वारा निर्मित 128