________________ रतन पुनः अम्बिका के ध्यान में स्थिर चित्त वाला बनकर बैठ गया / उसके महासत्त्व की कसौटी करने के लिए देवी ने अनेक उपसर्ग किए | परन्तु मेरुसम निश्चल रहा / तब सिंह के वाहन पर बैठकर चारों दिशाओं को प्रकाशित करती हुई अम्बिका देवी ने पुनः प्रत्यक्ष होकर कहा- हे वत्स ! मैं तेरे सत्त्व पर प्रसन्न हूँ, तुम मुझसे वरदान माँगो / तब रतन बोला- माँ ! इस महातीर्थ के उद्धार सिवाय मेरा कोई मनोरथ नहीं है | आप मुझे श्री नेमीनाथ प्रभु की कोई ऐसी वजमय प्रतिमा दीजिए जो शाश्वत रहे / देवी बोली- सर्वज्ञ भगवन्त ने तेरे द्वारा ही इस तीर्थ का उद्धार होगा ऐसा कहा है | इसलिए तुम मेरे साथ चलो और इधर-उधर देखे बिना मेरे पीछे पीछे चले आना | रतन देवी के पीछे-पीछे चलने लगा / चलती-चलती देवी पूर्व दिशा की तरफ हिम पर्वत के कंचन शिखर पर पहुँच गई / वहाँ सुवर्ण गुफा के पास जाकर सिद्धि विनायक नामक अधिष्ठायक देव को विनती करके कहने लगी, हे भद्र ! इस गुफा के द्वार खोलो / देवी के आदेश से उसने गुफा के द्वार खोल दिए / अन्दर से दिव्यपुञ्ज प्रगट हुआ / अम्बिका देवी के पीछे-पीछे रत्न श्रावक ने गुफा से प्रवेश किया / उस गुफा के स्वर्ण मन्दिर में विराजमान विविधि मणि रत्न आदि प्रतिमाओं को बताते हुए देवी ने कहा- हे रतन ! यह मूर्ति सौधर्मेन्द्र ने बनाई है / यह धरणेन्द्र ने पद्मराग मणि से बनाई है / यह मूर्तियाँ भरत महाराजा आदित्य यशा आदि के द्वारा रत्न और माणेक से बनाई हुई हैं / असंख्य काल से यह ब्रह्मलोक में पूजी गई हैं / यह मूर्तियाँ राम तथा कृष्ण के द्वारा बनाई हुई हैं इस मूर्तियों में से तुम्हें जो पसन्द हो वह ग्रहण कर लो / मानव मन का हरण करने वाली मनोरम्य परमात्मा की मूर्तियों को देख कर उसके हर्ष का पार नहीं रहा / कौन-सी प्रतिमा पसन्द करूँ यह निर्णय करना उसके लिए कठिन हो गया / अन्त में उसने मणि रत्नादि मय जिन बिम्ब को पसन्द किया / तब अम्बिका देवी ने कहा- हे वत्स ! भविष्य में लोग इस मणिरत्नों से बनी मूर्ति की आशातना करेंगे / अतः तुम यह आग्रह छोड़कर ब्रह्मेन्द्र द्वारा रत्न माणिक्य के सार से बनवाई गई इस मूर्ति को 125