________________ सुनकर रतन ने संघ के साथ रैवत गिरि के मुख्य शिखर पर प्रवेश किया / वहाँ पर गजेन्द्र पद कुण्ड के जल से स्नान करके शुद्ध वस्त्रों को धारण करके विमल राजा द्वारा स्थापित लेपमयी श्री नेमीनाथ प्रभु के काष्ठमय मन्दिर में प्रवेश किया / सभी यात्रियों ने हर्षित मन में गज पद कुण्ड के शुद्ध जल से कलशे भर-भरकर प्रभु का प्रक्षाल करने लगे / पुजारी के मना करने पर भी एक धारा प्रवाह से प्रक्षालन करते रहे / धीरे-धीरे लेप्यमयी प्रतिमा का लेप गलने लगा / थोड़ी ही देर में प्रभु प्रतिमा मिट्टी का पिण्ड स्वरूप बन गई / इस दृश्य को देखकर रत्न श्रावक शोकातुर होकर मूर्छित हो गया / सकल संघ शोक सागर में डूब गया | चारों तरफ हाहाकार मच गया / संघपति रत्न श्रावक को शीतल जल के उपचार से स्वस्थ किया / प्रतिमा के गलने से टूटे हुए हृदय वाला रतन आकुल-व्याकुल होकर विलाप करने लगा- इस महातीर्थ का नाश करने वाला | मैं महापापी ! मुझे धिक्कार हो, अरे यह क्या हो गया / हे प्रभु ! अब मैं क्या करूँ ? अब तो नेमीनाथ प्रभु ही मुझे शरणभूत हो / दृढ़ संकल्प के साथ रत्न श्रावक ने चारों आहार का त्याग कर दिया और प्रभु के चरणों में आसन लगाकर बैठ गया / समय बीतने लगा | रत्न श्रावक के सत्त्व की परीक्षा होने लगी / अनेक विघ्न आने पर भी दृढ़ संकल्पी बना रहा / उसके तप के प्रभाव से एक महीने के बाद अम्बिका देवी प्रकट हुई / हर्षित होकर रत्न श्रावक ने उसे नमस्कार किया / अम्बिका देवी ने कहा- हे वत्स ! तू खेद क्यों करता है ? तुम इस प्रतिमा का नया लेप करवाकर पुन: प्रतिष्ठा करवाओ / माँ के यह वचन सुनकर विषाद ग्रस्त बना रतन कहता है, माँ ! ऐसे वचन मत बोलो, पूर्व बिम्ब का नाश करके मैं भारे कर्मी बना हूँ और अब मैं पुनः लेप करके मूर्ति की स्थापना करूँ तो भविष्य में पुनः मेरी तरह अन्य कोई अज्ञानी इस बिम्ब का नाश करने वाला बनेगा / इसलिए माँ ! यदि आप मेरे तप पर प्रसन्न हो तो मुझे ऐसी अभंग मूर्ति दीजिए, जिससे भविष्य में किसी के द्वारा भी इसका नाश न हो सके / रत्न श्रावक के इन वचनों को सुना-अनसुना करके देवी अदृश्य हो गई / 124