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________________ गिरनार तीर्थ के उद्धारक श्री रत्नसार श्रेष्ठी जग में तीर्थ दो बड़े, शत्रुजय गिरनार / इक गढ़ ऋषभ समोसर्या, इक गढ़ नेम कुमार || उज्जिंत सेल सिहरे, दिक्खानाणं निसीहिआ जस्स तं धम्म चक्कवट्टी, अरिट्टनेमिं नमसामि || इस विश्व की वसुन्धरा पर संसार सागर से तारने वाले तथा डुबाने वाले अनेकों स्थल हैं / वेकेशन के दिनों में घूमने की एक फैशन बन गई है / हजारों नर-नारी प्लेन, ट्रेन, लक्जरी बसों द्वारा मौज-मजा उड़ाने के लिए, कश्मीर, कुल्लू मनाली, होंगकोंग, ऊटी, दार्जीलिंग, गोवा आदि हिल स्टेशनों पर जाते हैं और कर्मों का बन्धन करते हैं / यह बात भूल जाते हैं कि हिल स्टेशन डुबाने वाले हैं, तीर्थ स्थान तारने वाले हैं। तीर्थ स्थानों में जाने से शुद्ध भावों द्वारा विधिपूर्वक आराधना करने से कर्मों का क्षय होता है, आत्मा भार मुक्त हो जाती वर्तमान काल में हमारे पास बहुत तीर्थ हैं / परन्तु शत्रुञ्जय और गिरनार तीर्थ की तुलना कोई नहीं कर सकता / सिद्धाचल तीर्थ के कंकर कंकर में अनन्ता आत्माओं ने सिद्धपद को प्राप्त किया है और गिरनार तीर्थ अनन्तअनन्त तीर्थंकर परमात्मा के दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष कल्याणक की भव्य भूमि है / वर्तमान चौवीसी के बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमीनाथ प्रभु के अतीत चौवीसी के आठ तीर्थंकरों के दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण कल्याणक, अनागत चौवीसी के चौवीस तीर्थंकरों के निर्वाण कल्याणक की पावन भूमि है / दूरदूर से रैवत गिरि के शिखरों को देखते ही यात्रियों के मनमयूर नृत्य करने लग जाते हैं। 122
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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