________________ और भक्तों के मनोरथ पूर्ण करने वाली साक्षात् कल्पवृक्ष, चिन्तामणि रत्न के समान है। प्रतिष्ठा कराने वाले करमा शा के वशंज आज भी चित्तौड़ और उदयपुर आदि में है / वस्तुपाल ने साधर्मिक बन्धुओं के लिए जो परिश्रम किया अर्थात् दीर्घ दृष्टि से विचार करके शिला लेकर भोयरे में रखी जिससे दादा की प्रतिमा का सर्जन हुआ / वही दादा आज लाखों भक्तों को अपने पास खींच रहा है / इस कलियुग में दादा साक्षात् हाजरा-हजूर हैं / इस चौवीसी. में विमलवाहन नामक राजा श्री शत्रुञ्जय तीर्थ का अन्तिम अर्थात् सत्रहवाँ उद्धार श्रीमद् दुप्पसहसूरीश्वरजी म. के उपदेश से पाँचवें आरे में कराएगा / इन महान उद्धारों से प्रेरणा पाकर जो पुण्यवन्त आत्माएँ तीर्थ उद्धार का छोटा-बड़ा कोई भी कार्य देव-गुरु की कृपा से करेगा उसका जन्म-जन्मान्तर सफल होगा। नाणं सम्पन्नाए जीवे | सव्व भावाहिगमं जणवई // उत्तराध्ययन 29 गा. 59 ज्ञान सम्पन्नता एवं इसकी वृद्धि करने से आत्मा विश्व व्यापी छः द्रव्यों और उनकी पर्यायों को तथा उनके गुण थर्मों को जान सकता है। ज्ञान और दर्शन का घनिष्ठ सम्बन्ध है / एक के अभाव में दूसरा सम्भव नहीं है। 121