________________ विराजमान थे / पूज्यवरों को देखते ही करमा शा की देह रोमांचित हो गई, हृदय गद्गद् हो गया / आँखें हर्ष के आँसुओं से भर गई / वन्दन आदि करके, सुखशाता पूछकर अन्तर के भावोल्लास से हृदय के उद्गार कहने लगा / हे गुरुदेव ! आज मेरा दिन सफल हुआ है जो कि आपके दर्शन हुए, हे. सकल शास्त्र के ज्ञाता ! हे क्रियायोग में सावधान पूज्यवर ! आपश्रीजी ने मुझे जिस कार्य के लिए प्रेरणा दी थी उस कार्य को करने की अब मुझे आज्ञा प्रदान कीजिए / करमा शा की बातों को सुनकर उपाध्याय श्री विनयमण्डनविजयजी महाराज को अति प्रसन्नता हुई / उन्होंने कहा- अब धर्मकृत्यों में प्रमाद नहीं करना चाहिए क्योंकि 'श्रेयांसि बहु विघ्नानि' भाग्य का कोई भरोसा नहीं है, धर्म कार्यों को करने में शीघ्र ही प्रयत्नशील हो जाना चाहिए / करमा शा ने गुरुदेव के अन्तर्मन की बात को जानकर कहा- गुरुदेव ! मुझे आशीर्वाद दीजिए / गुरु भगवन्त के आशीर्वाद को लेकर करमा शा ने शीघ्र ही खम्भात से प्रयाण किया और पाँच दिन में ही सिद्धाचल की गोद में पहुँच गया / जैसे मेघ को देखकर मयूर नाचने लग जाता है वैसे ही गिरिराज का दूर से ही दर्शन करके उसका मनमयूर नाचने लगा, उसने रत्नों से सोना चांदी के पुष्पों से गिरिराज को बधाया और स्तुति करता हुआ बोलने लगा- हे शैलेन्द्र ! आज वर्षों के बाद आपका दर्शन हुआ आप तो साक्षात् कल्पवृक्ष हो, हे पुण्डरीक गिरि ! आप तो पुण्य मन्दिर हो- आपके एक-एक प्रदेश में अनंता आत्माओं ने मोक्ष प्राप्त किया है / इस प्रकार गिरिवर की भावभरी स्तुति करता हुआ वह संघ परिवार सहित तलहटी पहुँचा / वहाँ पर जाकर विशाल मण्डप बन्धवाया, सूत्रधारों की, शिल्पियों की, कारीगरों की रहने की, भोजन की सुन्दर व्यवस्था की / बादशाह बहादुर शा की तरफ से तीर्थोद्धार के फरमान का समाचार चारों तरफ सभी संघों को भेज दिया / सर्वत्र आनन्द का वातावरण प्रसारित हो गया / लोग प्रतिष्ठा महोत्सव में जाने की तैयारियाँ करने लगे / दूर-दूर देशों 116