________________ किया / तत्पश्चात् वह उपाश्रय में गया / वहाँ पर विराजमान आचार्यप्रवर श्रीमद्विजय सिद्धसेनसूरिजी महाराज के चरणों में बैठकर अपनी वेदना व्यक्त करने लगा / गुरुदेव ने उसे आश्वासन देकर कहा कि कल्पान्त करने से कुछ नहीं बनेगा / पूर्व काल में भी जब ऐसे उपद्रव आए तब जावड़ शा, बाहड़ शा ने इस तीर्थ के सुन्दर उद्धार किए | आप भी स्वस्थ होकर तीर्थोद्धार का कार्य शुरू करो / देशल शा ने कहा- गुरुदेव ! मेरे पास भुजबल, धनबल, राजबल, मित्रबल आदि सब है परन्तु अब आपश्रीजी का कृपाबल चाहिए | आपश्री का कृपारूपी आशीर्वाद मिल जाए तो मैं तत्काल उद्धार का कार्य चालू करा सकता हूँ। गुरुदेव ने कहा- श्रावकजी ! अच्छे कार्य में हमारी कृपा आपके साथ ही है, शासनदेव तुम्हारी सहायता करेगा, तुम्हारी भावना को पूर्ण करेगा, तुम शीघ्र उद्धार का कार्य प्रारम्भ करो / - पिता की भावना को पूर्ण करने के लिए उसके पुत्र समरा शा ने गुरु साक्षी में अभिग्रह धारण किया कि जब तक तीर्थ के उद्धार का कार्य पूर्ण नहीं होगा तब तक मैं ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा, प्रतिदिन एकासणा करूँगा उसमें भी पाँच विगई का त्याग करूँगा, भूमि पर शयन करूँगा। . बादशाह मूर्ति भंजक था / तीर्थ का उद्धार करने के लिए उसे और उसके हाथ के नीचे रहे हुए पाटण के सूबेदार अलरुखान को वश में करना और प्रसन्न करना जरूरी था / सर्वप्रथम समरा शा अलरूखान को मिलने के लिए बहुत बड़ी भेंट लेकर उसके पास गया / भेंट उसके सामने रखकर प्रार्थना कीसाहेब ! शत्रुञ्जय तीर्थ का जीर्णोद्धार करने की मेरी भावना है कृपया मुझे आज्ञा दीजिए और दिल्ली का बादशाह इस कार्य में कोई रुकावट न डाले ऐसा कोई मार्ग बताइए। अलरुखान ने कहा- समर ! तू तो मुझे अपने पुत्र से भी अधिक प्रिय है। तूझे जो भी कार्य करना है शीघ्र कर ले / तुम दिल्ली की कोई भी चिन्ता 103