________________ माघदन्ति-समीरजित्वरहय-प्रोद्यन्मणि-काश्चनस्वारीसमरूपभूरिवनिता-मोल्लासिचक्रिश्रियम् / त्यक्त्वा यस्तृणवल्ललौ व्रतरमा तीर्थकरः षोडशः स श्रीशान्तिजिनस्तनोतु भविनां शान्तिं नताखण्डलः // 3 // "जिन्होने मदोन्मत्त हाथी, शीघ्रगतिवाले-वायुको भी जीतनेवाले उत्तम घोडे, देदीप्यमान मणि रत्न-सुवर्ण--नवनिधि और चक्रवर्ती के चौदह रत्न, देवाङ्गना सदृश अनेक स्त्रिया, एवं छः खण्ड की राज ऋद्धियां, आदि चक्रवर्ती की लक्ष्मी को तृणवत् छोड़कर व्रत लक्ष्मीरूप स्त्री के साथ रमण करनेवाले और शकेन्द्रादि देवोंसे वन्द्य देवाधिदेव सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ भगवान् भव्य प्राणियों पर शान्तिका विस्तार करें। आनमानेकदेवाधिप-नृपतिशिरःस्फारकोटीरकोटिः कल्याणाङ्कुरकन्दो यदुकुलतिलकः कजलाभाङ्गदीतिः। लोकालोकावलोकी मधुमधुरवचाः पोज्ज्ञितोदारदारः, श्रीमान् श्रीउज्जयन्ताचलशिखरमणिर्नेमिनाथोऽवताद्वः // 4 // " जिनके चरणकमल में अति नम्र भावसे अनेक इन्द्रादि देवताओं के और राजा-महाराजाओं के सिर के करोड़ों मुकुटों के अग्रभाग झुके हैं और जो कल्याणरूप अङ्कर के कन्द (जड़) हैं, ऐसे यदुवंश में तिलकसमान एवं काजल समान अपूर्व शरीरकी कान्ति वाले तथा लोक--अलोक को केवल ज्ञानसे देखनेवाले, मधुसमान •मीठी- मधुरी वाणीवाले और उत्तम राजिमती स्त्रीको छोड़नेवाले, श्री उज्जयन्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org