SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीशुभशीलगणि विरचिते श्रीविक्रमचरिते मंगलपीठिका TANTONamroyro OCOG.OGEG.OCOC.9 SAMBee यस्याग्रेऽणुतुलां धत्ते प्रद्योतः पुष्पदन्तयोः। जीयात् तत् परमं ज्योतिलोकालोकप्रकाशकम् // 1 // " जिसके आगे सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश भी अणु समान सूक्ष्म अर्थात् निस्तेज हो जाता है, वह लोक और अलोकका प्रकाशक, उत्कृष्ट ज्योतिरूप केवलज्ञान चिरकाल तक विजयी बना रहे / " राज्यं. येन वितन्वता प्रथमतः सन्दर्शितानि क्षितौ, लोकाय व्यवहारपद्धतिरलं दानं च दीक्षाक्षणे / ज्ञाने मुक्तिपथश्च नाभिवसुधाधीशोवंशाम्बरत्वष्टा श्रीवृषभप्रभुः प्रथयतु श्रेयांसि भूयांसि नः // 2 // ___"इस पृथ्वीपर पहलेपहल राज्य करते समय जिस (श्री आदिनाथ) प्रभुने लोंगोंको व्यवहार पद्धति सिखायी, दीक्षा समयमें वार्षिकदान देकर . . दानधर्म दिखाया, एवं केवलज्ञान प्राप्तकरके निर्मल मोक्षमार्ग दिखाया, वह नाभि कुलकर (राजा) इक्ष्वाकु के विशाल वंशरूप आकाशमें सूर्य सदृश श्रीऋषभदेवप्रभु हमे सब प्रकारका कल्याण प्रदान करें।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy