________________ विक्रम चरित्र ऋण रहित कर दि / श्री वीरजिनेश्वर के संवत्सर को चारसो सीत्तर वर्षे ) गाण्य HOUSE TERS Jiaommunmummmmumtutne immuTHERNATION बित जाने पर महाराजा विक्रमादित्यने अपने नामका संवत्सर चलाया। जो विक्रम संवत्सर अब भी सभी को महाराजा विक्रमादित्यकी याद, कराता हुआ सारे भारतवर्षमें प्रसिद्ध हैं। विक्रमादित्य का इस प्रकार का परोपकार देख कर एक दिन इन्द्र महाराज सभा में बैठ कर देवताओं से कहने लगा कि 'देवता लोग ! धन होने पर भी स्वार्थी होने के कारण प्रायः धन का दान नहीं करते, न तीर्थ का उद्धार करते हैं, न किसी के व्याधि का हरण करते हैं और न किसी की आपत्ति को नष्ट करते हैं। परन्तु अपनी आत्मा मात्र को संतुष्ट करने वाले गृहस्थ व्यक्तियों से वे मनुष्य श्रेष्ट हैं जो संसारके सर्व प्राणिओं के उपर परोपकार कर के यश से संसार को प्रकाशित करते हैं।' Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org