________________ विक्रम चरित्र में तीन तपस्या करने पर भी जो कर्म को नष्ट नहीं कर सकता उस कर्मको समभाव का अवलम्बन करके सहज में ही नष्ट करता है। . इस प्रकार ज्ञानी राजा शिवने देवता से दिये हुए साधुवेषको धारण कर लिया। बाद में शिवराजर्षिने पृथ्वी के अनेक प्राणियों को धर्म बोध दिया और कर्म समूह के नष्ट होने पर मुक्ति प्राप्त कि। FOR ... इस प्रकार जो प्राणी आदर पूर्वक निर्मल भावना करते है वे कर्मका क्षय करके केवल ज्ञानको प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार श्रीसिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरसे चित्त में चमत्कार करने वाली धर्मकथा सुन कर राजा विक्रमादित्य बोलाकि ' अहो ! ! यह लक्ष्मी त्याग करने के योग्य ही है सज्जनों के उपभोग योग्य नहीं है।' क्यों कि बन्धु विगैरह सतत स्पृहा करते है, चोर चुराने की इच्छा रखते हैं, राजा अनेक छल करके हरण कर लेता है, अग्नि क्षण मात्र में ही भस्म कर देता है, जल डूबा देता है, पृथिवी में रखने पर यक्ष हरण कर लेते हैं और दुराचारी पुत्र सब नष्ट कर देते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org