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________________ 34. समवयस्क बच्चों के साथ पढाया जाता है, खेलते खेलते लडके ताना देते हैं, जिससे अपने पिताके बारे में मातासे पूछता है आखिर उसको द्वारपर लिखा हुआ श्लोक पढनेमें आता है जिससे वह अपने पिताका पत्ता लगाता है और सुकोमलाकी आज्ञा लेकर देवकुमार अवन्तिकी ओर विदाय लेता है। प्रकरण सत्रहवा . . . . पृष्ठ 171 से 184 तक अवन्तीमें देवकुमार माताकी आज्ञा लेकर अवन्ती आया और अनेक वेश्याँ के वहाँ भम्रण करता हुआ कालि वैश्याके वहाँ ठहरा / अपना नाम सर्वहर रक्खा और चोरीका कार्य शुरू किया, जिससे वेश्या नाराज हुई / बादमें वह गणिकाको प्रसन्न करता है और देवी द्वारा विद्याये प्राप्त करता है और प्रथम विक्रमादित्यके शयनगृह में प्रवेशकर वहाँसे वस्त्राभूषणोंकी चोरी करता हैं। जिसके विषयमें राजा मंत्रीयोंसे विचार परामर्श करता है और सिंह कोटवाल चोर पकडनेका बीडा झडपता है। चोर की चालाकीसे भरपूर यह प्रकरण यहां ही खतम होता है। प्रकरण अठारहवा . . . . पृष्ठ 185 से 206 तक कोटवाल व मंत्रीको चकमा आखिर कोटवाल को चकमा देने के लिये देवकुमार श्यामल बनता है सिंहको चक्रावेमें डालता है और खुद खभे पर कावड लेता है पवित्र गंगाजल लाता है, और कोटवाल को उदासीनता का कारण पूछकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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