________________ 380 विक्रम चरित्र में उत्पन्न हुई थी, देव योग से वह इसके पास आई / वहाँ आकर.. अत्यन्त क्रुद्ध हुई तथा मुनिवेषधारी अवन्ती सुकुमार को अनेक प्रकार से उपसर्ग करके परेशान किया और इस के शरीर के अवयवों को भी छिन्न भिन्न कर भझ किया / भद्रासुतने शुभध्यान करते हुए रात्रि में अपना शरीर छोड़ दिया और निष्पाप होकर नलिनीगुल्म विमान में देव हो गया। प्रातःकाल भद्रशेठ सूरिजी को पूछ कर जब बाहर उद्यान में गये तो वहाँ अपने पुत्र को सियाली के काटने से मरा हुआ देखा और बाद उस के देह को अग्नि संस्कार कर दिया / प्रातःकाल में अपने ज्ञानी सूरिजो से सुना कि वह नलिनीगुल्म विमान में गया है। यह सुन कर उन का शोक शांत हुआ, बाद में उस स्थान पर -बहुत धन खर्च कर के श्री पार्श्वनाथ जिनेश्वर का अत्यन्त सुन्दर चैत्य बनवाया / उसका पृथिवी में महाकाल यह नाम प्रसिद्ध हुआ / कालक्रम से ब्राह्मणों ने वहाँ शिवलिंग स्थापित किया / वीतराग भगवान का स्वरूप वीतराग जिनेश्वर देव लोगों को मुक्ति देने वाले हैं और वे देव, दानव आदि का स्थान भी दे सकते हैं / क्यों किः "अर्हन , देव, परमेश्वर, सर्वज्ञ, रागादि दोषोंसे रहित, तीनों लोक में पूजित यथार्थ स्थिति को कहने वाले हैं।"* * सर्वक्षो जितरागादिदोषस्त्रैलोक्यपूजितः। यथास्थितार्थवादी च देवोऽर्हन् परमेश्वरः // 42 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org