________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित आते हैं तब तक किसी के घर में रहकर समय बिताना ही उचित है। इसीप्रकार सोच विचार कर के बुद्धिमान् विक्रमचरित्र किसी माली के घर में जाकर अपने जहाज आदि के आनेकी प्रतीक्षा करता हुआ रहने लगा। भीम का कपट इधर विक्रमचरित्र के समुद्र में गिरते ही भीम कपट करता हुआ रोने लगा तथा चिल्लाया कि हाय, हाय ! यह क्या होगया। मेरे स्वामी इस समय मत्स्य को देखते हुए समुद्र में गिर गये। अरे कोई दौडो, समुद्र में प्रवेश करो, तथा गिरे हुए मेरे स्वामी को शीघ्र ही समुद्र में से निकालो। अब मैं अपने खामी के बिना कैसे रहुँगा / इत्यादि अनेक प्रकार से कपट पूर्वक रुदन करता हुआ दूसरों को भी रुलाने लगा। लोभ ही पाप का मूल है / जीभका रसास्वाद व्याधि का मूल है / स्नेह दुःख का मूल है। मनुष्य इन तीनों का त्याग करे, तो सुखी हो सकता है। लोग लोभ के कारण इस प्रकार की माया करते है, कि जिसको ब्रह्मा भी अपनी बुद्धि से नहीं जान सकते / दुर्जनव्यक्ति ऊपर से रोते है तथा अंदर से हँसते है। तथा वे जाति से विशुद्ध एवं निर्मल वस्तु में भी छिद्र बनाते है / परन्तु सज्जन व्यक्ति गुण की प्रशंसा करते है तथा छिद्र को बन्द कर देते हैं। खल और सज्जन व्यक्ति सुई के अग्र और पिछले भागों का अनुकरण करते हैं / अर्थात् खल छिद्र करने वाले होते है और सज्जन छिद्र पूरक होते है। जब कनकश्री ने अपने स्वामी को समुद्र में गिरा हुआ सुना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org