________________ www. मुनि निरंजनविजयसंयोजित ____ मैं एकाकी हूँ, असहाय हूँ, अपने परिवार से रहित हूँ, इस प्रकार की चिंता सिंह को स्वप्न में भी नहीं होती। सिंह शकुन, चन्द्रबल, धन या ऋद्धि कुछ भी नहीं देखता है। वह एकाकी भी अपने भक्ष की सिद्धि के लिये डट जाता है। जहाँ साहस होता है वहाँ सिद्धि भी मिलती है। यह सुन कर भय से थर थर कापता हुआ वह शत्रु सामन्त बोला कि 'हे सात्त्विक मुझ को छोड दो। मैं तुम्हारे चरण कमलों की सेवा करूँगा।' तब वह वैद्य बोला कि 'आज मैं तुम को दया भाव से छोड देता हूँ। मैं देव, दानव तथा मानव सभी को अपने वश में करता हूँ। प्रातःकाल शीघ्र ही कनकपुर के उद्यान में तुम भक्ति पूर्वक मेरी सेवा करने के लिये नहीं आओगे तो यह तल्वार तुम्हारे कण्ठ को छेदन कर देगी।' ___तब वह मुख्य शत्रु शीघ्र ही उसकी आज्ञा मानकर बोला कि ' हे स्वामिन् ! मैं अब तुम्हारा पूर्ण सेवक हो गया और आप की आज्ञानुसार ही करूँगा। सामन्तों को वश में करना . . ' इसी प्रकार सभी सामन्तों को अपना पराक्रम दिखा कर विक्रमचरित्र रात्रि में उस बाह्योद्यान में उपस्थित होगया। उसने अपने सेवकों को बुलाकर कहा कि 'अच्छे अच्छे चित्रों से सभागृह को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org