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________________ 28 मकरण बारहवा . . . . पृष्ठ 101 से 115 तक इस तरह नारीरूप में विक्रमादित्यने सुकोमला को उपदेश दिया और मनुष्य के प्रनि होता हुआ द्वेष दूर हठाया और इनाम में दिया हुआ रत्न ही लग्न का साक्षीभूत मान के अपने मित्र भट्टमात्र और अग्निवैताल को रात्रि का सभी हाल सुनाया और भोजन के बाद तीनो नगर बहार गये और अग्निवैताल को पाँची घोड़े व वेश्या को अवन्ती वापस भेजने के लिये और कमलावती पट्टरानी से तीन दिव्य शंगार मँगवाये। ___ माया ही कार्यसाधिका है एसा समझ-सोचकर जिनमंदिरमें नृत्य करने के विचार से जिनमंदिर में तीनो जण आये और नृत्य करने लगे / संज्ञा मुजब दोनो मित्र देव के रूप में आकाश में उडने लगे। इस नृत्य का पत्ता पूजारी द्वारा राजा शालिवाहन को मिलने से वह भी जिनमंदिर में आया और नृत्य देखकर प्रसन्न हुआ और राजसभा में नृत्य करने के लिये तीनोंको साग्रह विनति की गई / नारी से द्वेष रखने वाले विद्याधर (विक्रमादित्य ) ने राजा को सुना दिया जिस से राजाने कोई भी स्त्री को राजसभा में हाजर न रहने का निश्चय बताया, जिस से विद्याधर ने नृत्य करना स्वीकार किया और नृत्य में नारीद्वेष का तादृश वर्णन कर बताया। इधर राजकुमारी सस्त्रियों द्वारा इस वृत्तान्त को जाम के पुरुषवेष में नृत्य देखने के लिये जाकर चूपचाप राजसभा में बैठ गई। नृत्य देख कर सुधबुध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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