________________ विक्रम चरित सामने आता हुआ देख कर जैसे सिंह मृग को देखकर पकड़ने के लिये. दौडता है, उसी प्रकार जारको मारने को दौड़ा, हलीने अपने बाहुबल से उस जार को मार डाला और मुखमें से उन दोनोंको बहार निकाला। गर्व खंडन व प्रतिबोध ___ राजा विक्रमादित्य अपने मन में सोचने लगा कि इसकी बलिष्ठता वास्तव में आश्चर्यजनक है / इसप्रकार का बल तो मैंने इस पृथिवी में किसी में भी नहीं देखा। विक्रमादित्य उस व्यक्ति के महान् पराक्रम का विचार कर रहा था उतने में एक प्रकाशमान शरीर की कान्तिवाला देव सन्मुख आकर कहने लगा "हे विक्रमादित्य ! मैं स्वर्णप्रभ नामक देव हूँ। मैंने तुम्हारे गर्व का खंडन करने के लिये यह किसान आदि की आश्चर्यकारक घटना तुझको दिखाई हैं। सज्जन मनुष्य बल, लक्ष्मी, शास्त्र, कुल आदि बातोंका गर्व नहीं करते। क्यों कि हे राजन् ! इस सबका न्यूनाधिक भाव पृथिवी में सर्वत्र रहता है।" इस प्रकार कहकर देव अदृश्य हो गया। विक्रमादित्य पुनः अवंती आया और अपनी माता के चरणों में प्रेम पूर्वक प्रणाम करके बोला " हे मातः ! तुमने जो कहा था, वह सब सत्य है / " अश्वारूढ होना व जंगल में जाना एकदा राजा विक्रमादित्य को कीसी ने सुंदर लक्षणवंत दो घोडे भेट किये। अश्व के वेग की परीक्षा करने के लिये राजा अमात्य, मन्त्री आदि सहित उद्यान में गया। राजा ने एक घोडे पर चढ कर उसे एड लगाई। वह अश्व विपरीत शिक्षित था, अतः राजा को सिंह, व्याघ्र, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org