________________ COM ____षष्ठ सर्ग छवीसवाँ प्रकरण विक्रमादित्य का गर्व विक्रम का गर्व एक दिन राजा विक्रमादित्य ने अपनी माता से जाकर कहा " हे माता ! क्या यह संसार में मेरे से अधिक पराक्रमवाला कोई व्यक्ति होगा !" : माता ने उत्तर दिया " हे पुत्र ! तुम ऐसा मत बोलो। क्यों कि संसार में सब प्राणियों में न्यूनाधिक भाव हैं। यह पृथिवी बहुरत्न्य है। इस में पद पद पर द्रव्यों की खान और योजन योजन पर रसकुंपिका है। परन्तु पुण्य हीन व्यक्ति उसको नहीं देख सकते। संसार में सेर पर सवा सेर जरुर हैं। .. नगर छोड कर जाना __ माता की इस प्रकार की बात सुन कर राजा विक्रमादित्य 21 . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org