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________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 309 अनशन करने के लिए जो भी लोग आते थे उन सबको आनन्दकुमार रोक लेता था। जब धर्मध्वज उस पर्वत पर प्राणत्याग करने के लिए आया तो आनन्दकुमार के सेवकों ने उसे आनन्दकुमार के सामने लाकर हाजिर किया। तब आनन्दकुमार ने उसे पूछा कि 'हे पुरुष श्रेष्ठ ! तुम यहाँ प्राणत्याग करने के लिये क्यों आये हो ?' तब धर्मध्वज कहने लगा कि 'सपाद लक्ष देश का भूषण स्वरूप श्रीपुर नामका नगर है / मैं उसके राजा गजवाहन का पुत्र धर्मध्वज हूँ। जब मैं महाबल राजा की पुत्री शुभमती से विवाह सादी करने के लिये वल्लभीपुर पहूँचा तब वह कन्या मानो किसी देव या दानव ने हरली और अभी तक उसका पता नहीं लगा / इसीलिये मैं यहाँ प्राणत्याग करने आया हूँ। यदि मैं कन्या के बिना अपने नगर में जाऊँगा, तो सज्जन अथवा दुर्जन सभी मुझ पर हसेंगें / ' ____धर्मध्वज के ऐसा कहने पर आनन्दकुमार बोला कि 'कौन ऐसा मूर्व है जो किसी स्त्री के लिये प्राणत्याग करता हैं ! स्त्रीया तो अनेक हो सकती है, परन्तु प्राण एक बार जाने से फिर कभी भी नहीं मिल सकता। मरने पर भी वह कन्या कहाँ से अब. प्राप्त हो सकती है। पति के मर जाने पर स्त्री कहीं कहीं काष्ठ भक्षण करती है, परन्तु स्त्री के लिये स्वामी मनुष्य तो कहीं भी प्राण त्याग नहीं करता / हे नर श्रेष्ठ धर्मध्वज! स्त्रिया प्रायः कुटिलचित्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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