________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 303 लगा 'तुम अपने हृदय में दुःख क्यों करते हो ? देव, दानव, या गन्धर्व कोई भी अपने कर्म के फल से छूट नहीं सकते। क्यों कि चन्द्रमा तथा सूर्य भी ग्रह से पीडा पाते हैं, हाथी, सर्प और पक्षी बन्धन पाते हैं। ज्यादा क्या कहूँ बुद्धिमान् व्यक्ति भी दरिद्र होते हैं। ये सब देख कर हमारी धारणा ऐसी है कि भाग्य ही सब से बढ़कर बलवान् है। जो कुछ कर्म किया है, उसका ही परिणाम सब मनुष्य पाते हैं। इस बात को समझ कर धीर व्यक्ति विपत्ति आने पर भी दुःखी नहीं होते। जो कर्म पहले किया है, उसका क्षय भोगे बिना नहीं होता / अपने किये हुए कर्मका शुभ या अशुभ फल अवश्य ही भोगना पडता है। . वह उसे समझाने लगा कि 'राजा विक्रमादित्य अपने पुत्र के इस प्रकार चले जाने से अपने हृदय में अत्यन्त दुःखी होते होंगे। अतः तुम्हें अब वहँ! जाना चाहिये / ' उस की यह बात सुन कर वह राजकुमार विक्रमचरित्र बोला-'हम को राजा के समीप जाने से अब क्या लाभ ? जो व्यक्ति कृतकार्य नहीं हैं वे कहीं भी शोभा नहीं पाते। मैं ने मनोवेग जैसे उत्तम घोडे को भी गुमा दिया। इसलिये मैं अब 'रैवताचल ' (गिरनार) पर्वत पर जाकर अपने प्राण त्याग कर दूंगा / इसमें तनिक भी सन्देह नहीं।" ____भारण्ड पुत्रके इतना कहने पर वह बूढा भारण्ड पक्षी बोला कि 'हे पुत्र ! तुमने अप्रूव आश्चर्य देखा है।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org