________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित उसका पुत्र.बोला-" हे तात ! वह कौनसा औषध है जिससे वह राजकन्या इस समय दिव्य दृष्टिवाली हो जायगी / वह मुझे बतलाओ।" तब भारण्ड ने कहा 'अपनी हगार (विष्टा को गजेन्द्र कुण्ड के जल से अमावस्या के दिन घिस कर यदि उस राजकन्या के नेत्रों में अञ्जन किया जाय तो वह दिन में भी तारे देखने लग जायगी। यदि अपने मल (हगार ) का चूर्ण अमृतवल्ली (गडूची) के रस से मिश्रित करके नेत्र में लगावे तो रूपकी परावृत्ति होती है और यदि इस चूर्ण को चन्द्रवल्ली (माधवी लता) के रस से मिश्रित करके नेत्रों में लगावे तो पुनः पूर्व रूप आ जाता है / कहा भी है कि ____ "बिना मंत्र का कोई भी अक्षर नहीं है। एक भी ऐसा वनस्पति का मूल नहीं है जो औषध नहीं हो / पृथिवी अनाथ नहीं है। केवल विशेष विधि आम्नाय कहने वाले ही दुर्लभ हैं।" तदनन्तर ·उस भारण्ड का तीसरा पुत्र कहने लगा-'विद्यापुर नामक गाँव में 'सिंह ' नामक एक किसान अपने क्षेत्र में एक कन्या को लाया / उस कन्या को क्षेत्र में ही छोड़कर उससे विवाह करने के लिये वह शीघ्रता से विवाह सामग्री लाने के लिये अपने घर गया। अपने घर जाकर उस किसान ने अपनी स्त्री से कहा कि तुम ने यह काम क्यों नहीं किया ? तुमने मेरे सब घर का नाश कर दिया / इसलिये मैं इस समय एक अद्भुत रूपवाली नवीन कन्या विवाह करने xअमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम् / अनाथा पृथिवी नास्ति आम्नायाः खलु दुर्लभाः॥३९६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org