________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 297 इधर राजकुमारी शुभमती-अपने धर्म की रक्षा करने के लिये घोड़े पर चढ़ कर गिरनार पर्वत की और चलदी। राजकुमारी अपने मन में विचार करने लगी कि यदि मैं लौटकर पुनः अपने पिता के घर जाऊँगी, तो वहाँ जाकर क्या उत्तर दूंगी / मैं दैव योग से पहले ही दो स्वामियों को खो चुकी हूँ और अब बड़ी आपत्ति में फंस गई हूँ। अब क्या करूँ ? इस प्रकार चिन्तामग्न राजकुमारी एक वृक्ष के नीचे पहुँची / जो व्यक्ति चिन्तातुर है अथवा बिगडी हुई स्थिति में है या विपत्ति में पड़ा हुआ है, या रोगग्रस्त है, उसको किसी प्रकार भी निद्रा नही आती / अशान्त चित्त होने से शुभमती को वृक्ष के नीचे रहने पर भी नींद नहीं आई। भारण्ड पक्षी और उस के पुत्र ___ उस वृक्ष पर एक वृद्ध भारण्ड पक्षी बैठा हुआ था। उस पक्षी के लड़के चारों दिशाओं से आकर वहाँ एकत्रित हुए। वह बूढा पक्षी बोला कि 'किसने कहा पर क्या क्या आश्चर्य देखा अथवा सुना है, सो कहो / ' तब उन में से एक ने कहा 'हे तात ! मैं वल्लभीपुर के बाहर के वन में गया था। वहाँ नगर के मध्य में कोलाहल सुन कर देखने के लिये गया तब लोग परस्पर इस प्रकार बोल रहे थे कि जबतक धर्मध्वज नामक वर राजकन्या शुभमती से विवाह करने के लिये बड़े उत्सव के साथ राजमहल पर आया, तब तक कोई मनुष्य राजा की कन्या को चुराकर ले गया / राजा ने सर्वत्र उसकी खोज कराई, परन्तु वह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org