________________ विक्रम चरित्र कह कर संबोधित किया, यह मेरे लिये अच्छा नहीं हुआ। इसलिये मेरे मन में अत्यन्त दुःख हुआ और मूर्छा आई / / ___तब सखी कहने लगी कि 'इसका तुम अपने हृदय में तनिक भी खेद मत करो। ऐसा स्वरूपवान पुरुष तुम्हारा भ्राता-भाई तो हुआ / देव, दानव, गन्धर्व, राजा, दरिद्र या धनिक कोई भी अपने पूर्व जन्म में किये हुए पापों से मुक्ति नहीं पाता है। जिसके जिस प्रकार के कर्म होते है उसे उसी प्रकार का फल मिलता ही है। इस में कीसी भी व्यक्तिसे अन्यथा नहीं हो सकता / . अपनी सखी एवं दासियों के समझाने पर लक्ष्मी ने शोक का परित्याग किया / उसने विक्रमचरित्र को अपना भ्राता समझ कर उसके लिये भोजनादि की व्यवस्था की तथा उसका सन्मानकर अपने घर में रखा / विक्रमचरित्रने भोजनकर के आराम किया / कुछ देर बाद सड़क पर वाजिंत्र का नाद सुन कर विक्रमचरित्र जाग गया और लक्ष्मी से पूछने लगा कि 'नगर में इस समय क्या हो रहा है और वह वाजिंत्र नाद किस कारण से है ? लक्ष्मी ने कहा कि 'आज रात्रि में राजा की कन्या का धर्मध्वज नामक राजपुत्र से शुभ मुहूर्त में विवाह होगा। इसलिये नगर में चारों और स्थान 2 पर ध्वजा, तोरण आदि बान्धे गये हैं और स्थान 2 पर अच्छे अच्छे नर्तक लोक नाना प्रकार के नृत्य आदि कर रहे हैं।' यह बात सुनकर विक्रमचरित्र ने पुनः लक्ष्मी से कहा कि 'हे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org