________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 285. www मान नानु सरे उस कुमारी को देख कर विक्रमचरित्र ने कहा कि 'हे भगिनि ! तुम्हे नमस्कार है / तुमने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है ?' विक्रमचरित्र की यह बात सुन कर लक्ष्मी मूर्छित हो गई। सखीने शीतलोपचार कर के उसको सचेतन किया। सचेत होकर वह लक्ष्मी पृथ्वी पर शून्यचित्त होकर तथा उदासीन मुख लेकर बैठी रही। सखी द्वारा बहुत पूछने पर भी वह कुछ नहीं बोली तब दासियों ने कहा कि तुम अपने दुःख का कारण हमें बतलाओ। विक्रमचरित्र अपने मन में विचार कर ने लगा कि मेरे यहाँ आते ही इस को ऐसा कष्ट हुआ, इसलिये मुझको बार बार धिक्कार है / जब दासियो ने बार बार प्रश्न किया तब लक्ष्मी कहने लगी कि 'मैंने इस पुरुष को अपना पति बनाने की मनमें इच्छा की थी, परन्तु इस ने तो मुझे भगीनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org