________________ 273 मुनि निरंजनविजयसंयोजित योग्य नहीं है। उन लोगों की बात सुन कर राजा विक्रमादित्य स्वयं कन्या को खोजने के लिये उद्यत हुए / भट्टमात्र ने देखा कि राजा को स्वयं ही कन्या देखने के लिये जाने की इच्छा है तो वह राजा से बोले कि 'राजाओं का यह आचार नहीं है कि साधारण लोगों के समान स्वयं पुत्र के लिये कन्या को देखने जाय / इसलिये आप यहाँ रहें। मुझे आदेश दीजिये। मैं दूर दूर तक जाकर कन्या की खोज कर के आऊँगा।' राजा का आदेश प्राप्त कर के भट्टमात्र ने चतुरङ्गिणी सेना से युक्त होकर बाहर जाने के लिये प्रस्थान किया। राजा ने सेना से कहा कि 'हे सुभट लोग! आप लोग मेरे मंत्री भट्टमात्र की आज्ञा सतत आदर पूर्वक पालन करें। उन सेवकों ने उत्तर दिया कि- 'हे राजन् ! आपका यह वचन प्रमाण है / क्योंकि राजा के आदेश की आराधना अत्यन्त सुख देने वाली होती है। ... अवन्ती से कुछ दूर जब भट्टमात्र की सेनाका पड़ाव पड़ा हुआ था, तब वहाँ एक 'भट्ट' आया / उसने सेना को देख कर लोगों से पूछा कि 'यह इतनी बड़ी विशाल सेना किस की है ?' तब किसी ने उत्तर दिया कि 'यह तो राजा विक्रमादित्य के मंत्री श्री भट्टमात्र की सेना है।' यह सुन कर भट्ट ने पुनः पूछा कि 'जब मंत्री की सेना ही. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org