________________ तेईसवाँ प्रकरण कन्या की शोध एकदा राजा विक्रमादित्य अपनी सभा में बैठे हुए थे। वह हस्ती, घोड़े, और सैन्य युक्त अपने अत्यन्त समृद्ध राज्य को देखकर जैसे समुद्र पूर्ण चन्द्रमा को देखकर प्रसन्न होता है उसी प्रकार खुश होते थे / उस दिन प्रातःकाल सभा में बैठे . हुमे राजा भट्टमात्र आदि से कहने लगे "हे मंत्रीश्वर ! जैसे बिना सूर्य के आकाश शोभा नहीं पाता है उसी प्रकार मेरा अन्तःपुर भी योग्य पुत्र वधू बिना शोभा नहीं पाता / इसलिये मैं इस पुत्र के विवाह होने तक प्रतिज्ञा करता हूँ कि इसके विवाह पश्चात् ही दो बार से अधिक भोजन करूँगा, अयन्था नहीं। पुत्रवधु की खोज . तब राजा की आज्ञा के अनुसार चारों दिशाओं में अनेक राजसेवकों को कन्या देखने के लिये भेजा / वे सब स्थान स्थान खूब भ्रमण करके पुनः लौटे और राजा के पास आकर बोले कि 'विक्रमचरित्र योग्य हमें कहीं भी कोई कन्या नहीं मिली। किसी भी राजा की कन्या इस के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org