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________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित भक्षण करता हूँ, सादे वस्त्र धारण करता हूँ और पृथ्वी पर शयन करता हूँ। ऐसी अवस्था में यह ऐश्वर्य पूर्ण राज्य लेकर मैं क्या करूँगा?' ओंकार नगर में दान राजा ने श्री सिद्धसेनसूरीश्वरजी को निर्लोभ और सर्वज्ञ समझ कर उनकी प्रशंसा की / तब श्री सिद्धसेनसूरीश्वरजी महाराज ने ओंकारपूर, में श्रावकों की इच्छानुसार राजा विक्रमादित्य द्वारा एक बड़ा भारी जिन मन्दिर बनवाया / सूरि की सूत्रों को संस्कृत में रचने की इच्छा एकदा प्रातःकाल श्रीसिद्धसेनसूरीश्वरजी उस जिन मन्दिर में अत्यन्त प्रसन्न हृदय से इष्ट देव को वंदन करने के लिये गये / उस दिन देवालय में श्रीसिद्धसेनसूरीश्वरजी को वंदन करने के लिये बहुत से सांसारिक व्यक्ति एकत्रित हो गये / श्रीसिद्धसेनसूरीश्वरजी ने हर्षपूर्वक कई प्रकार की स्तुति से श्रीऋषभदेव का गुणगान किया तथा चैत्यवन्दन किया और " नमुत्थु णं " इत्यादि अच्छी स्तुतियों से श्री वर्द्धमान जिनेश्वर को नमस्कार किया नमुत्थु णं इत्यादि प्राकृत स्तोत्र से नमस्कार करते. हुए श्रीसूरीजी को देखकर संसारी जन बहुत हँसे और बोले कि-'इतने दिनों से इतने शास्त्रों का अभ्यास किया, तो भी इस प्रकार के प्राकृत-स्तोत्रों से ही अर्हत प्रार्थना क्यों करते हैं ? उन लोगों का वचन सुन कर श्रीसिद्धसेनसूरीश्वरजी कुछ लज्जित हो गये / उस नगर से विहार करके प्रतिष्ठानपुर में उपस्थित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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