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________________ विक्रम चरित . आपने एक विलक्षण धनुविद्या सीखी है। इससे छुटा हुआ बाण तो आप समीप आता है और गुण डोंरी दिगन्त में जाती है। तात्पर्य यह कि मार्गण अर्थात् याचक समूह तो आपके पास में रहता है और गुण यानी आपकी प्रसिद्धि दिगन्त दूर दूर दिशाओं के अन्त तक व्याप्त है। आप इतना दान करते हैं कि दान ग्रहण करने के लिये याचक लोग आप के पास दूर दूर से ही आया करते हैं। और दान करने के कारण उत्पन्न हुई कीर्ति दिगन्त में व्याप्त होती है धनुष की तो डोरी नजदीक रहती है और बाण दूर जाता हैं, परन्तु आपकी यह धनुर्विद्या बडी बिलक्षण है, इसमें तो मार्गण रूपी बाण समीप में रहता है और गुण दूर चला जाता है। सारें राज्य का दान ____ अपूर्व भाववाले श्लोक को सुनकर राजा दक्षिण दिशा की ओर अपना मुख करके बैठ गये। तात्पर्य यह कि ऐसा विलक्षण भाव वाला श्लोक सुन कर राजा ने सन्तुष्ट होकर पूर्व दिशा का राज्य उक्त कवि रिजी महाराज को देने का भाव बताया। फिर सूरीश्वरजी ने राजा के संमुख आकर पुनः दूसरा श्लोक कहाः___ आप सब को सभी चीजें दे देते हैं ऐसा जो आपका वर्णन बड़े बड़े कवि लोग करते हैं, वह बिलकुल झूठ है / आप का शत्रु आपका पृष्ठ 4 अपूर्वयं धनुर्विद्या भवता शिक्षिता पुनः। .. . मार्गणौघः समभ्येति गुणो याति दिगन्तरम् // 11 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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