________________ का अपमान होनेसे अवन्तीनगरी का त्याग करके अवधूतवेषमें भ्रमण करने की इच्छासे भट्टमात्र की मित्रता की और दीनवचनोंसे रोहणगिरि से रत्न को पाया किन्तु कर्मवीर पुरुष को सिद्धान्त से विरुद्ध होनेसे और याचनाद्वारा पानेसे उसको वहाँ ही फेंक दीया। सत्त्वशील पुरुषरल प्राणत्याग को श्रेष्ठ मानते हैं, किन्तु याचना नहीं करते / यह आप इस प्रकरण के अंतमें पढेगें और प्रकरण समाप्त होगा / अब आगे क्या होता है वह देखिये / प्रकरण दूसरा . . . . पृष्ठ 10 से 13 तक .. तापीके किनारे .....महाराजा विक्रमादित्यने याचनाद्वारा पाये हुए रत्नको फेंक दीया और रोहणगिरि को धिक्कार देकर मित्र भट्टमात्र के साथ तापी के किनारे पर किसी पेड़के नीचे बैठे है वहाँ शगाल के शब्दों से आभूषण युक्त शब और एक मासमें राज्य प्राप्ति का संकेत सुनना और भर्तृहरि का राज्य त्याग और उनका तप करने जाना और भाग्यकी परीक्षाके लिये विक्रमादित्य का अवन्ती प्रति गमन करना और राजा भर्तृहरि के राज्यगद्दी छोड़ने के कारणों को अब आप अगले प्रकरणमें पढेंगे। .... .. प्रकरण तीसरा . . . . पृष्ठ 14 से 20 तक ...... राजा भर्तृहरिका दरबार ... जगतके प्रगतिशील देशोमें सर्व श्रेष्ठ देश मालवदेश व उनकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org