________________ 250 विक्रम चरित्र दिव्य सिंहासन एकदा शुभ मुहूर्त में राजा ने कारीगरों को बुलाया तथा सिद्ध विद्या वाले तक्षकों (लुहार) को कीर काष्ठ (लकड़ी विशेष) का रत्न जटित सिंहासन बनाने की आज्ञा दी। कारीगरों ने राजा विक्रमादित्य के लिए शीघ्र ही कीरकाष्ठ का अत्यन्त मनोरम रत्न जटित सिंहासन बनाया और उस में कीरकाष्ठ की ही रत्न जटित बत्तीस पुत्तलिकायें लगाई। बत्तीस पुत्तलिकाओं से युक्त वह सिंहासन सुन्दर काष्ठ से अच्छे मुहूर्त में बना होने के कारण अत्यन्त दीप्तिमान् था। " राजा विक्रमादित्य के साहस से प्रसन्न होकर इन बत्तीस पुत्तलिकाओं से युक्त यह श्रेष्ठ सिंहासन इन्द्र ने लाकर दिया है।" इत्यादि अनेक प्रकार से पंडितों ने प्रशंसा की। उस सिंहासन को ऐसी प्रसिद्धि प्राप्त हुई, जो आज तक भी लोगों में प्रचलित है। योगी का अद्भुत फल भेंट करना. एक समय कोई योगी राज द्वार पर आये तथा द्वारपाल से राजा को निवेदन करवाया / राजा की आज्ञा मिलने पर वह योगीराज राजा के समीप उपस्थित हुए और एक बीजपुर (बीजोरा-जम्बीरी लीम्बू ) भेंट किया। बाद में प्रति दिन प्रातःकाल वह योगिराज एक एक बीजपुर भेंट देता रहा। कई दिन बाद एक मर्कट-बंदर राजा के हाथ से वैसा एक बीजपुर लेकर खाने लगा, तो उस में से एक रन निकल कर नीचे गीरा / वह अमूल्य रत्न देख कर राजा ने योगीराज से पूछा कि-आपके इस प्रकार के रत्न को इस में गुप्त रख कर भेंट देने का क्या कारण है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org