________________ 248 विक्रम चरित्र विक्रमादित्य अपने मन में विचार करने लगा कि इस की नम्रता प्रशंसनीय है तथा माता-पिता में अत्यन्त भक्तिवाला भी है। क्यों कि जो अपने उत्तम आचरण से माता-पिता को प्रसन्न करता है वही पुत्र है, अपने हित से भी बढ़कर अपने स्वामी का ही हित चाहती है वही पत्नी है, तथा जो सम्पत्ति और विपत्ति में समान व्यवहार रखे वही मित्र है। इस प्रकार के तीनों ही व्यक्ति संसार में पुण्यवान् लोगों को ही प्राप्त होते हैं।* दीप पास में स्थित वस्तु को ही प्रकाशित कर सकता है। किन्तु कुल-प्रदीप सुपुत्र तो पहिले बहुत समय पर मरे हुए पूर्वजों को भी अपने गुणों की श्रेष्ठता से प्रकाशित करता है। ___रात्रि का प्रकाशक दीप चन्द्रमा है, प्रातःकाल में प्रकाश देने वाला दीप सूर्य है, तीनों लोगों का प्रकाशक धर्म है और कुल का प्रकाशक सुपुत्र ही है। विक्रमचरित्र ने पुनः कहा—'हे पिताजी ! आप प्रतिष्ठानपुर में मेरी माता सुकोमला से विवाह करके छल से यहाँ चले आये, अतः मैंने उसका बदला लेने के लिये ही सामन्त, मन्त्री, वेश्या आदि को इस प्रकार छल कर लज्जित किया। . * प्रीणाति यः सुचरितैः पितरं स पुत्रो, ____ यद् भर्तुरेव हितमिच्छति तत् कलत्रम्।। तन्मित्रमापदि सुखे च समक्रिय य देतत् त्रयं जगति पुण्यकृतो लभन्ते // 4 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org