________________ 244 विक्रम चरित्र की लोगों की बातें सुनता हुआ वह चोर अत्यन्त निर्भयता के साथ .. राजा के समीप उपस्थित हुआ तथा राजा के आगे उसके आभूषण आदि रख कर चोर ने भक्तिपूर्वक राजा के चरण कमलों में प्रणाम किया। ___इस चोर को देखकर राजा के मनमें स्वाभाविक प्रेम उत्पन्न हुआ। राजा ने उसे पूछा कि 'हे चोर ! तुम कौन हो ? किस स्थान से यहाँ आये हो ? किस प्रयोजन से आये हो ? और तुम किस के पुत्र हो?' राजा के इस प्रकार पूछने पर चोर बोला कि 'हे राजन् ! आप अपने सात पूर्व भवों की बात जानते हो, तो विदेश से आये हुए मुझ को क्यों नहीं पहिचानते ? मैं श्रीमान् शालिवाहन राजा की पुत्री का पुत्र हूँ और प्रतिष्ठानपुर से अपने पिता को प्रणाम करने के लिये आया हूँ।' पिता पुत्र मिलन उस की बात सुन कर राजा ने सोचा कि प्रतिष्ठानपुर में मैं अपनी पत्नी को गर्भवती छोड़ कर आया था, निश्चय ही यह पुत्र उस का है / ' यह सोच कर राजा ने उसे पूछा कि 'तुमने यह कैसे जाना कि तुम्हारे पिता कौन है / ' देवकुमारने अपना पूरा वृत्तान्त सुनाया कि किस तरह उन के लिखे श्लोक से उसने उन्हें पहचाना / यह सुन कर राजा ने सिंहासन से उठ कर अपने पुत्र का बड़े हर्ष से आलिंगन किया और सस्नेह उसे अपना आधा आसन बैठने के लिये दिया। फिर राजा ने कहा कि 'यह मेरा पुत्र है। यह साहसिकों में अग्रणी मेरी स्त्री सुकोमला के गर्भ से उत्पन्न हुआ है, राजा विक्रमादित्य ने अनेक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org