________________ कोई रही हुई त्रुटियोंको सुहृद्भावसे मुझे सूचित करेंगे / अपना उत्कर्ष चाहनेवाली व्यक्ति कभी अपनी कृतिको पूर्ण नही मान सकता, क्योंकी कलका अनुभव आजकी दृष्टिसे अधुरा ही लगता है। यह लोकोक्तिके अनुसार हमें भी यह ही अनुभव है। ___ इस ग्रन्थका प्रथम भाग छपकर तैयार होनेमें बहुतसा समय बिता, आज तक यह ग्रन्थ शीव्र छपवानेके लिये अनेक सज्जनोने प्रेरणा की थी। उन प्रेरणाओंके फल स्वरूप ही इस समय यह ग्रन्थ पाठकोंके करकमलमें रखनेका अवसर पाया है। . शासनसम्राट श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी जैन ज्ञानशाळा पांजरापोल, अमदावाद. वि. सं. 2018, चैत्रशुक्ला पंचमी, रविवार -मुनि निरंजनविजय - RRENTRALINE - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org