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________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित जीतना, अथाग जल भरे समुद्र को अपने चरणों से ही पार करना, पुलस्त्य ऋषि के पुत्र रावण जैसे शक्ति शाली शत्रु का होना और युद्ध में सहायक वानरों की सेना के होने पर भी अपने आत्म बल से श्री रामचन्द्र ने समस्त राक्षसों का संहार किया / विक्रमादित्य के शयनगृह में ___ इसी प्रकार आत्म बल से परिपूर्ण वह चोर देवकुमार देवी का वरदान प्राप्त करने के बाद नगर में भ्रमण करता हुआ संपूर्ण दिन बिता कर रात में अदृश्य होकर रक्षक गण होने पर भी विक्रमादित्य के शयन गृह के पास गया और सोचने लगा कि बिना किसी चमत्कार को किये बिना पिताजीसे मैं नहीं मिलूँगा / क्यों कि आडम्बर से ही लोग पूजे जाते हैं। मैं आपके कुटुंब की ही व्यक्ति हूँ, ऐसा कहने से किसीका आदर नहीं होता। जैसे वन में विकसित पुष्प को लोग ग्रहण करते हैं, परन्तु अपने शरीर से उत्पन्न मल का त्याग करते हैं। इसलिये अपना चमत्कार कुछ तो अवश्य दिखाना चाहिये। शयन किये हुए अपने पिता के मुख को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ तथा उसने अपने माता-पिता के चरण कमलों में भक्ति पूर्वक प्रणाम किया। राजा के वस्त्राभूषणों की चोरी देवकुमार अपना पराक्रम तथा चमत्कार दिखाने के लिये राजा की शय्या के नीचे रखे हुए अठाईस कोटि सुवर्ण के मूल्य के वस्त्राभूषणों से भरी हुई पेटी को यत्न पूर्वक चुपचाप लेकर वहाँ से अदृश्य हो गया और वेश्या के यहाँ पहुँचा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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