________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित मैं उस नृत्य को देखने के लिये दो महीने रहूँगा। वहाँ तक तुम किसी भी काम के लिये मेरा स्मरण मत करना / ' राजा विक्रमादित्य बोले कि 'तुम जाओ, और तुम्हारी इच्छा हो वह करो,' इस प्रकार राजा के कहने पर उसी क्षण अग्निवैताल देवद्वीप में महान् आश्चर्य के करने वाले नृत्य को देखने के लिये वहाँ से अदृश्य हुआ। चण्डिका को प्रसन्न कर विद्यायें प्राप्त करना इधर देवकुमार वेश्या के घर से निकल कर चण्डिका देवी के मन्दिर में पहूँचा। चण्डिका देवी क प्रणाम कर के बोला कि हे देवी! तुम निरन्तर सब लोगों को अभिलषित वस्तुओं देती रहती हो / मुझ पर भी प्रसन्न होकर विजय और अदृश्य करण नाम की विद्या दो / यदि तुम मेरी ये अभिलषित वस्तुयें नहीं दोगे तो मैं अपना मस्तक काट कर तुम को सहर्ष समर्पित कर दूंगा।' ऐसी प्रार्थना करने पर भी जब चण्डिका देवी कुछ भी नहीं बोली, तब वह तलवार लेकर अपना मस्तक काटने को तैयार हुआ। ___उस चोर (देवकुमार) का अपूर्व साहस देख कर चण्डिका देवी ने प्रसन्न होकर चोर का तलवार वाला हाथ पकड लिया और बोली कि ‘साहसी वीर !' मैं तुम्हें दोनों विद्यायें देती हूँ। तुम अपना मस्तक काटने का आग्रह छोड़ दो और अपने इष्ट स्थान को जाओ। जो सदाचारी, धैर्यवान् धर्मपूर्वक बहुत अग्रिम भविष्य (दीर्घकाल) क सोचने वाला तथा न्यायपूर्वक कार्य करने वाला हो, ऐसे सज्जन मनुष्य की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org