________________ सत्रहवा प्रकरण अवन्ती में देवकुमार का अवन्ती आना देवकुमार ने अकेले ही हाथ में खड्ग लेकर अवन्ती के लिए प्रतिष्ठानपुर से प्रस्थान किया / धीरे धीरे देवकुमार स्थान स्थान पर अनेक प्रकार के नगर, ग्राम, नदी तथा पर्वतों को देखता हुआ अवन्ती के समीप पहुँचा और अपने मन में विचार करने लगा कि 'जिनोंने बिना अपराध मेरी माता का त्याग कीया और जो यहाँ आकर राज्य करते है उससे, मैं अपनी वीरता का प्रकाश किये बिना किस प्रकार मिलूँ। जो पुत्र उत्पन्न होकर अपने उच्च चरित्र से पिता को हर्ष नहीं देता है उसके जन्म लेने से क्या ? अर्थात् उस पुत्र का जन्म निष्फल ही है। इसलिये मुझ को अपना प्रभाव दिखा कर ही पिता से मिलना चाहिये / तब तक किसी वेश्या के घर में ही रहना चाहिये। क्योंकि वेश्या के घर का आश्रय लिये विना किसी का कार्य सिद्ध नहीं होता।' कारण कि: . “विनय करना राजपुत्रों से सीखना चाहिये / अच्छी वाणी का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org