________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित पुत्र!' आओं, आओ, ऐसा ही कहते हैं, परन्तु पिता का नाम लेकर कोई भी मुझे नहीं बुलाता है !" इस प्रकार अपने मन में विचार करता हुआ देवकुमार उदासीन मुख लेकर अपनी माता के सन्मुख आया और बोला: माता से पिता के बारे में प्रश्न, माता का शोक _ " हे माता ! तुमने बिना स्वामी के ही चूड़ियाँ तथा अच्छे आभरण क्यों धारण कर रक्खे हैं ? जिस स्त्री को स्वामी नहीं होता, वह इस प्रकार के आभरण धारण नहीं करती है / इसलिये इसका क्या कारण है, सो ठीक ठीक बताओ।" सुकोमला ने उससे कहा कि तेरा - पिता एक देव था। वह मेरी शय्या पर से उड़ कर आकाश में क्रीडा करता हुआ कहीं चला गया है। तब से मैंने आज तक उसे कभी नहीं देखा। देवता लोग कुतूहलवश सर्वत्र क्रीडा करते रहते हैं। इसलिये मुझे लगता है कि तेरा पिता देव कहीं जीवित अवश्य है / इसीलिये मैं चूडियों को धारण किये हुए हूँ। इस प्रकार शालिवाहन राजा का दौहित्र देवकुमार का माता के. साथ होती हुई बात का कोलाहल सुनकर जो लोक एकत्र हुए थे; वे जाने के बाद गृह को शून्य समझ कर सब तरफ देखने लगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org