________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित दो मञ्जूषायें हैं और चौदह कोटि नकद द्रव्य है। इस के साथ राज्यलक्ष्मी मिलने से तो आनन्द की सीमा ही न रहेगी।' यह सुन कर मण्डप में छुप कर गुफा में आकर राजा विक्रमादित्य अपने हाथ में तलवार लेकर उस चोर से बोलाः- रे पापिष्ठ ! अब शीघ्र ही तू अपने हाथ में तल वार धारण कर / तुने पर-स्त्री हरण तथा चोरी आदि दुराचार किये हैं, उन सब पापों का दण्ड देना चाहता हूँ। इस तलवार से तुम्हारा शिर काट कर के मैं आज ही ऊन पापों का फेसला देता हूँ।' सबुर ! राजा की यह बात सुनकर वह चोर हक्का-बक्का हो गया। जब तक तलवार लेकर वह अपनी शय्या से उठा तब तक उस से युद्ध करने के लिये अत्यन्त क्रोध कर के राजा उसके सम्मुख आया / चोर अपने मन में सोचने लगा कि हाय ! मैं ही अपनी मूर्ख बुद्धि से इसको अपने घर में ले आया। अब यह इस समय क्या करेगा और क्या नहीं ? जिसका निवारण नहीं हो सकता, ऐसे क्रोध से रक्त बाघ को मैंने अपने हाथ से पकड़ लिया। मैंने सुख पाने के लिये अपने ही हाथों कौतुचिका (कवाछ) को लगा लिया / इधर राजा ने भी अपने मन में विचार किया कि यह वही अत्यन्त बलवान् खप्पर नाम का चोर है, जिसका वर्णन देवी ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org