________________ विक्रम चरित्र . में चोरी करता है। इसलिये यह जो कुछ. प्रतिकूल कार्य करेगा, वह सब मैं सहता जाऊँगा। जैसे सुवर्ण वेध और आघात को सहता है, तब कर्ण का आभूषण होता है, उसी प्रकार बिना कष्ट सहे गौरव प्राप्त नहीं होता / उस चोर ने मार्ग में राजा के साथ जाते हुए उसी साधु को देखकर प्रणाम किया और वह बोला कि-'हे साधु आपने जो कहा था कि विक्रम मिलेगा, वह नहीं मिला / ' इस पर साधुने सोचा कि यदि मैं सच कहता हूँ कि यही राजा विक्रमादित्य है, तो लोगों का तथा इसका बड़ा अनिष्ट होगा। इसलिये इस को स्पष्ट नहीं कहना चाहिये / ऐसा सोच कर साधु ने उत्तर दिया कि मैंने तुम से कहा था कि तुम को विक्रम मिलेगा / सो तुम को तन्नामक व्यक्ति मिल गया है। ____ जब वह चोर अपने स्थान पर पहुंचा और गुफा में जाते विक्रम से बोला कि ' भोजन तैयार हो रहा है, तब तक तुम इस मण्डप में बैठो / ' विक्रम से ऐसा कह कर वह अपनी गुफा में जाकर कन्याओं से बोला कि-' हे श्रेष्ठि कन्याओ ! आज तुम लोग मेरी बात सुनो। मैं अपने भागिनेय की सहायता से राजा विक्रमादित्य को मार कर और उसका राज्य लेकर तुम लोगों से बड़े उत्सव के साथ विवाह करूँगा। हमारे पास में सात कोटि सुवर्ण है / सवालाख मूल्य के कई रत्न हैं। लक्ष मूल्य के कई अच्छे अच्छे रेशमी वस्त्र हैं। मुक्ता से भरी हुई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org