SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्रम चरित्र जाति, कुल, रूप, बल, विद्या, तपस्या, लाभ, धन इत्यादिका अभिमान करने से वह हीन हीन होता है।' विक्रमादित्य का अवन्ती गमन . .. यह सुनकर अग्निवैताल बोला ' एवमस्तु' अथात् एसा ही हो। इसके बाद विक्रमादित्य जिस महल में रहता था, उस महल के प्रवेश द्वार पर उसने स्पष्ट ऐसा लिखा कि- " कमल समूह में क्रीडा करने वाला वीर धर्मराजा, पृथ्वी की रक्षा करने के लिये दंड धारण करने वाला, पुरुष से द्वेष करने वाली काष्ट भक्षण करती हुई तथा चिता में जलने वाली राजकन्या से विवाह करके मैं इस समय अकेला अवन्ती नगर को जाता हूँ।" इस प्रकार लिखकर गांव के बाहर वाटिका में स्थित श्रीआदिजिन को नमस्कार करके अग्निवैताल के साथ प्रस्थान किया और उज्जयनी आये। अवन्ती के चोर का वर्णन इधर विक्रमादित्य का आगमन जानकर तथा उससे मिलकर अत्यन्त प्रसन्नता से अञ्जलिबद्ध होकर भट्टमात्र राजा के आगे बोलाः"हे राजन् ! मैं आपकी आज्ञा से इस नगर में आया तथा न्यायपूर्वक x अवन्तीनगरे गोपः परिणीय नृपाङ्गजाम् / गां पातुं दण्डभृत् पद्मोत्करक्रीडापरोऽनघः // 30 // दृष्टे च पुरुषे द्वेष्टां कुर्वती काष्ठभक्षणम् / . अहमेकोऽधुना वीरः परिणीय रयादगाम् // 31 // (युग्मम् ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy